मंत्रयोगों हष्ष्चैव लययोग स्तृतीयकः, चतुर्थो राजयोगः (शिवसंहिता) योग एक आध्यात्मिक प्रकिया को कहते हैं जिसमें शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने का काम योग होता है ! महर्षि पंतजलि ने योगदर्शन में कहा ‘योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः’, योग शब्द ‘युज समाधौ’ आत्मनेपदी दिवादिगणीय धातु में ‘घञ्’ प्रत्यय लगाने से निष्पन्न होता है। स्वामी विवेकानंद इस सूत्र को अनुवाद करते हुए कहते है,”योग बुद्धि (चित्त) को विभिन्न रूपों (वृत्ति) लेने से अवरुद्ध करता है, भगवान श्रीकृष्ण ने कहा ‘योग: कर्मसु कौशलम्’ कर्मो में कुशलता को योग कहते हैं। अष्टांग योग” हे यम (पांच “परिहार”): अहिंसा, झूठ नहीं बोलना, गैर लोभ, गैर विषयासक्ति….
Read more